पंजाब की सरदारनियां-4 (Punjab ki sardarniyan-4)

Font Size

पिछला भाग पढ़े:- पंजाब की सरदारनियां-3

कुछ दिन पहले जब से सिमर कौर राजवंत से मिल कर बातें करके गई थी, मानो राजवंत का कही मन ही अलग था था। बार-बार सिमर कौर की बातें उसके ज़हन में घूमे जा रही थी, और उसकी आंखों के सामने बिहारी मर्दों की एक नग्न तस्वीर आ जाती थी, जिसमें वह उनके गुप्तांग की कल्पना करती हुई अपने ख्यालों में खोई सी बैठी थी। तभी अचानक उसे बाहर जोर-जोर से किसी की आवाज़ सुनाई दी।
आवाज सुनते ही वो अपनी कल्पना से बाहर आई, और उठ कर जैसे ही दरवाजा खोल कर देखा, तो फिर से एक आवाज सुनाई दी-

“सरदारनी जी जल्दी आइए, जरा भैंस को संभालिए आके।”

पशुओं वाले बड़े में से आवाज सुनाई दी, और राजवंत तुरंत उस तरफ गई तो सामने मोहन भैंस को पेड़ के साथ बांध रहा था।

मोहन मूल रूप से बिहार का रहने वाला था, मगर पंजाब में उसे कई साल हो चले थे काम करते हुए। गांव में भी वह दो-तीन घरों के काम कर चुका था और अब मौजूदा सरपंच ने उसे बलवंत के यहां 3 महीने पहले काम पर रखवा दिया था।

मोहन करीब 55 साल के करीब था। काला रंग, सिर और दाढ़ी के बाल अब हल्के सफेद हो चले थे, 83 किलो वजनी शरीर और 5’9″ का कद। शादी की, मगर कुछ ही सालों बाद पत्नी चल बसी और बच्चे अब अपने-अपने काम पर लग चुके थे।

“की होया मोहन, यह क्यों बांध रहा है भैंस को?” राजवंत ने पशुओं वाले बाड़े में आते हुए पूछा।

“अरे आप संभालिए इसे कुछ देर। हीट में आई हुई है भैंस कल से, हम झोटा लेके आते है, आप रुकिए यहां।” कहता हुआ मोहन दूसरे पशुओं की तरफ गया जहां पर झोटा बंधा हुआ था। तो वहीं राजवंत एक सोटी (छोटी लाठी) लेकर उससे भैंस के बदन पर खुजलाने लगी, ताकि वह आराम से खड़ी रहे।

अब तक मोहन ने झोटे के गले से संगल निकाल दिया था, और वो दौड़ता हुआ भैंस के पास आके रुका और पीछे से भैंस को सूंघता हुआ नाक उपर उठाने लगा। मोहन भी पीछे-पीछे आ गया और भैंस के बदन को सहला के उसकी पूंछ पकड़ के साइड हटा ली साथ ही हल्की सीटिया मारने लगा।

राजवंत भी सोटी से भैंस के बदन को सहला रही थी, और भैंस अब स्थिर खड़ी थोड़ा-थोड़ा पेशाब करके झोटे को अपनी हीट दिखने लगी। फिर दोनों का मिलन हुआ। मिलन होने के बाद मोहन बोला-

“सरदार जी को फोन करके मिठाई मंगवाइए सरदारनी जी, भैंस तो नए दूध हो गई।”

राजवंत ने मोहन की बात सुनी और उसके चेहरे की तरफ देखा तो मोहन ने इशारा करते हुए झोटे के नीचे जमीन की तरफ इशारा किया। राजवंत ने भी देखा तो वहां पढ़ी बूंदों से उसे समझ आ गई के मोहन क्या कहना चाह रहा था।

“जा संगल ले आ फिर इसका ओर बांध दे दोनों को इनकी जगह पर।” राजवंत ने मोहन को कहा।

“नहीं-नहीं, एक बार और लगने दीजिए।” मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा और चोर आंख से राजवंत को देखता हुआ सीटिया मारने लगा।

राजवंत भी समझ गई के बिहारी अब जान-बूझ के उसके मजे ले रहा था। मगर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाई और वैसे ही खड़ी रही। मोहन की नज़र अब राजवंत की ओर भी थी, जो फिर से ये दृश्य देख कर आंखें बंद करके खड़ी खुद को काबू कर रही थी, पर उसकी आंखें मोहन की आवाज ने खोल दी।

“लगता भैंस पहली बार झोटे से लग रही है सरदारनी जी, एक पैर भी आगे नहीं उठा रही। देखिए तो कैसे एक ही जगह पर खड़ी है।” मोहन जान-बूझ कर बोला ताकि राजवंत के जवाब से उसे उसके दिल की हालत जानने को मिल सके।

वहीं राजवंत चुप खड़ी मोहन की बात सुन कर उसे देख कर भैंस की तरफ देखने लगी। मोहन ने एक नज़र भर राजवंत को देख ओर फिर झोटे का संगल लेने चला गया।

पर राजवंत अब मोहन को जाते हुए देख रही थी, तो फिर से उसके मन में सिमर कौर की बात याद आने लगी, “अगली बार आऊंगी तो खुशखबरी देना के मेरी राजवंत बहन पर बिहारी चढ़ाई कर गया।” सोचते हुए राजवंत कौर के मन में एक चीस सी उठी।

“सरदारनी जी ले जाए झोटे को जा अभी एक बार और नए दूध होना है?” मोहन ने फिर से मसखरी करते हुए राजवंत को छेड़ा।

“क्या कहा?” राजवंत ने मोहन की तरफ देख कर पूछा। उसे समझ नहीं आया था कि मोहन भैंस कहना भूल गया था या सच में वो उसी को भैंस बोल रहा था।

“हम्मम, मेरा मतलब झोटा बांध दूं जो भैंस को एक बार नए दूध कराना है?” मोहन ने झोटे के गले में संगल डालते हुए कहा।

“हां-हां बांध दो, भैंस यही रहने दो।” कहती हुई राजवंत अब घर की तरफ जाने लगी।

मोहन राजवंत को जाते हुए देख रहा था, और उसके पिछवाड़े पर ही उसकी नज़र थी। लो मन में सोचने लगा कि इस रज्जो (राजवंत) के बारे में जो सुना उससे कहीं बढ़ कर है ये।

वहीं दूसरी तरफ जस्मीन जिसे अब बैंक में लगे हुए 3 महीने हो चुके थे, और दिन ब दिन संतोष उसके साथ नजदीकियों बढ़ाता जा रहा था।

अब तक दोनों बॉस एम्पलाई ना होकर दोस्ती तक आ चुके थे, और कई बार संतोष जस्मीन को डबल मीनिंग बात कर देता तो जस्मीन भी उसे हंस के टाल देती।

आज जब संतोष और जस्मीन गाड़ी में एक लोन फाइल को क्लीयर करके वापिस आ रहे थे। चुप्पी तोड़ते हुए संतोष ने जस्मीन से बात शुरू की, “जस्मीन एक बात पूछूं अगर नाराज़ नहीं होगी तो?” संतोष ने गाड़ी चलाते हुए जस्मीन की तरफ देख के पूछा।

“है पूछिए सर।” जस्मीन ने भी संतोष की तरफ देखा।

“तुम इतनी सुन्दर हो, उपर से कातिलाना हुस्न। तो किसी भंवरे ने इस फूल का रस चखा है या नहीं?”

संतोष ने जस्मीन को देखा तो जस्मीन भी संतोष की बात सुन कर हैरानी से उसे देखने लगी, और संतोष को जैसे उसकी नजरों में थोड़ा गुस्सा ओर नाराजगी दिखाई दी, “सॉरी अग्र कुछ गलत लगा तो मैंने पहले ही कहा था नाराज मत होना”.

“नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है सर।” जस्मीन हल्का मुस्कुराती हुई बोली, “दरअसल पहले कभी ऐसा सवाल नहीं किया किसी ने तो इसलिए।”

जस्मीन के इस जवाब से संतोष थोड़ा सहज हुआ, “हां तो इससे पहले तुम्हें ऐसा सवाल पूछने वाला कोई यूपी वाला मिला भी नहीं या मिला था कोई।” संतोष ने फिर हल्का मजाक किया और मुस्कुरा कर जस्मीन को देखा।

जस्मीन भी मुस्कुराती हुई आंखे झुका गई और बोली, “आपके दोनों सवालों का जवाब ना है।”

ना शब्द सुनते ही संतोष थोड़ा हैरान हुआ, “कमाल की बात है, इतनी सुंदर लड़की और कोई भंवरा नजदीक नहीं आया?”

“मतलब आए थे, पर मैंने मन कर दिया सब को।” जस्मीन अब थोड़ी खुल कर बोली।

“अच्छा, तो… अगर अब कोई भंवरा फिर से इस फूल का रस पीना चाहे तो?” संतोष ने पूछते हुए जस्मीन को देखा।

“हम्ममम, सर गुस्सा मत कीजियेगा पर उस भंवरे को जानना चाहिए के मेरी जूती का साइज 7 का है।” जस्मीन ने भी इशारे से संतोष को समझा दिया।

संतोष भी समझ गया के जस्मीन क्या इशारा कर रही थी। पर वो मुस्कुराते हुए बोला, “अरे फिकर मत करो, जूती जितने चाहे ले लेना, पंजाबी, कसूरी, लाहौरी, जैसी चाहे पसंद की। बस भंवरे को रस पिला देना जब वो आए तो।” संतोष ने जस्मीन की बात का जवाब देते हुए नहले पर दहला मारा।

संतोष की बात सुन कर जस्मीन की हंसी छूट गई और संतोष भी जस्मीन को देख कर मुस्कुराते हुए फिर से बोला, “समझ गई ना ये पंजाबन मैं क्या कह रहा हूं, या फिर से बताऊं?”

जस्मीन हंस रही थी ओर संतोष की बात सुन कर उसकी तरफ देखती हुई ने हां में सिर हिला कर इशारा किया।

Leave a Comment