पिछला भाग पढ़े:- बूढ़े बाप ने मेरी चूत चोदी-1
हेलो दोस्तों मेरा नाम सुनैना है, और मैं अभी 29 साल की हूं। भरे-पूरे शरीर की मालकिन हूं गोरी-चिट्टी, दिखने में बहुत ही सुंदर और लाजवाब लगती हूं। बड़े-बूढ़ों की तो हालात ही खराब हो जाती है। जब भी मैं मायके जाती हूं वहां पर मैं बड़े और बूढ़ों को अपने आप को घूरते हुए ही पाती हूं।
उम्मीद है आप इस कहानी के पिछले भाग को पढ़ लिए होंगे। जहां अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह मेरे पति मुझे मायके में जोर-जोर से चोद कर मुझे नंगा ही चूत साफ करने के लिए वॉशरूम भेज दिए, और जब मैं वॉशरूम से वापस लौट रही थी, तब मेरे बूढ़े बाप ने मुझे पूरी तरह से नंगा देख लिया। अपनी शादी-शुदा, भरे-पूरे शरीर की मालकिन बेटी को जब वह नंगी देखे, तो उनकी तो नज़रें ही नहीं हट रही थी। वह लगातार मेरी चूची और मेरी चूत को घूर रहे थे।
मैं चुप-चाप जाकर अपने कमरे में लेट गई, और सोचने लगी कि अब क्या होगा? पिता जी से कैसे नज़रें मिलेंगी? और यही सोचते हुए सो गई? सुबह जब आंख खुली तब मैं जाकर चुप-चाप नाश्ता बनाने लगी। मेरे पति उठ कर आए और फिर मां और पिता जी भी आ गए।
फिर मैं उन लोगों को नाश्ता देने लगी। मैं अपनी नज़रें पिता जी से मिला नहीं पा रही थी। मैं चुप-चाप थाली को देखते हुए उसमें भोजन परोस कर वहां से जल्द ही हट जा रही थी। पिता जी मेरी और देखते थे। मैं भी जब पिता जी की ओर देखती तब हम दोनों की नज़रें मिलने से पहले नज़र हम लोग फेर लेते थे।
फिर सभी लोगों ने नाश्ता किया। तब मेरे पति बोले कि उनको घर जाना होगा। मैं तो जैसे घबरा ही गई। मैं भी उनके साथ जाने के लिए जिद करने लगी। मैं यहां पर कैसे अकेले रह सकती थी? कल रात को जो पिता जी के साथ हुआ था मैं वह सोच-सोच कर मरी जा रही थी। पर मेरे पति थे कि मुझे ले जाने को तैयार ही नहीं थे। उनका कहना था कि अभी मैं यही रहूं और मां-पिता जी की थोड़ी बहुत और सेवा करूं।
फिर वह मुझे यहां मां-पिता जी के साथ छोड़ कर चले गए। अब समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे पिता जी के सामने जाऊं, कैसे पिता जी से बातें करूं? मा भी कम नहीं थी। वह भी मुझे बोल रही थी कि जाओ पिता जी को खाना खिला दो। मैं मां को बोल रही थी कि तुम पिता जी को खिला दो, पर मां थी कि करने को तैयार नहीं थी। वह बोल रही थी कि मुझसे चला नहीं जा रहा है, मैं थोड़ी आराम करूंगी।
दोपहर का समय था। मां खाना खा कर अपने कमरे में आराम करने चली गई, और पिता जी अभी घूम कर बाहर से आए हुए थे। मैं उन्हें खाना देने जा रही थी। मेरी तो नज़रें ही उनसे नहीं मिल रही थी। मैं बहुत घबरा रही थी। फिर किसी तरह अपने आप को संभालते हुए उनके सामने खाने को परोसने लगी, कि तभी हड़बड़ा कर मेरा पल्लू ही नीचे गिर गया, और मेरी गोरी-गोरी चूचियां फिर से अधनंगी उनके सामने आ गई। वह तो जैसे नज़रों से ही मेरी चूचियों को खा जाएंगे। मैं यह देख कर बिल्कुल शर्मा गई, और वहां से भाग कर किचन में चली आई।
पिता जी बैठ कर हड़बढ़ाते हुए खाना खा रहे थे। मुझे भी लग रहा था कि आज पिता जी मेरी चूचियों को देख कर थोड़ा घबरा गए थे, और मैं भी असमंजस में थी। मैं दोबारा खाना पूछने के लिए उनके पास गई तो मेरे मुंह से आवाज ही नहीं निकली। तब उन्होंने सर उठा कर खुद ही बोल दिया कि अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, जाओ तुम खाना खा लो।
गर्मी के दिन थे तो पिता जी खाना खा कर, अपने कमरे में जाकर मां के साथ सोने लगे। मैं भी खाना खा रही थी, पर खाना मेरे गले से उतर ही नहीं रहा था। बार-बार पिता जी के सामने वाला वह दृश्य नज़र आ रहा था। उनकी धोती में फनफनाते हुए लंड को सोच कर मेरी तो जान ही निकल रही थी।
मैं भी खाना खा कर सोने जाने लगी, कि तभी मां-पिता जी के कमरे से हल्की-हल्की कुछ आवाज आ रही थी। मैं जाकर उनके कमरे के पास कान लगायी, और सुनने की कोशिश की। मां की हल्की-हल्की सिसकारी निकल रही थी। ऐसा लग रहा था पिता जी उन्हें चोद रहे थे, और मां मुंह से बोल रही थी-
मा: आप बूढ़े हो गए, पर आपको ज़रा भी तमीज नहीं है। इस उम्र में कोई यह सब करता है क्या? घर में शादी-शुदा बेटी आई हुई है। वह देख लेगी, सुन लेगी, तो क्या सोचेगी? आपको ज़रा भी ख्याल नहीं है। इस उम्र में जाने क्या आपने देख लिया कि आपका तो शांत ही नहीं बैठ रहा है।
और यह सब बोलते हुए मां के मुंह से हल्की-हल्की आआआअह्ह्ह उउउउह्ह्ह आवाज से निकल रही थी। मां फिर बोली-
मां: कल आधी रात को भी जाने आपको क्या हो गया था? आप आधी रात को आए, और मेरी साड़ी उठा कर मेरी चूत को चोदना शुरू कर दिए थे। आपको समझ नहीं आता कि किस उम्र में क्या करना चाहिए? जिस उम्र में भजन करना चाहिए, उस उम्र में आप बूढ़े होकर इस बुढ़िया की चूत चोद रहे हैं?
पापा: चुप-चाप रह ना साली, ठीक से चोदने भी नहीं देती। रात को भी मैं नहीं चोद पाया था, और अभी भी मैं नहीं चोद पा रहा हूं ढंग से। उम्र हो गई है तो क्या करूं? मन भी तो करता है। अब तेरा ही तो एक बुर है मेरे पास, जिसे चोद कर अपने आप को शांत कर सकता हूं। अब तू भी देने से मना करेगी, तो मैं कहां से दूसरा बुलाऊंगा? चुप-चाप चोदने मुझे?
तभी मां की सिसकियां अब कराहों में बदल गई। ऐसा लग रहा था जैसे मम्मी दर्द में हो, और उन्होंने झट से पिता जी को धकेल कर अलग कर दिया।
पिता जी गुस्से में बोले: जा साली मत चुदा मुझसे। मैं ऐसे ही रह लूंगा अपना तड़पता लंड लेकर। क्या करूं बूढ़ा हो गया हूं तो? मेरा भी तो मन करता है। पर मेरे मन को कौन सुनने वाला है यहां? मैं चुप-चाप सो जाऊंगा, तू सोजा।
पिता जी की गुस्से भरी आवाज सुन कर मैं डर गई, और भाग कर अपने कमरे में सो गई। मैं औंधे मुंह लेटी कमरे में सो रही थी, कि थोड़ी देर बाद ऐसा लगा जैसे मेरे रूम में किसी का आना हुआ हो, और वह मुझे दरवाजे से खड़े होकर देख रहा हो। मैं डर कर पलट नहीं रही थी, कि क्या पता पिता जी ही खड़े हो, और मुझे घूर रहे हो। जहां तक मुझे उम्मीद थी कि यह पिता जी ही हो सकते थे। मैं चुप-चाप ऐसे ही लेटी रही। वह लगभग 10 मिनट तक मुझे घूरते रहे, और फिर जब लगा कि वह चले गए। तब धीरे से मैंने पलट कर देखा तो वहां पर अब कोई नहीं था।
मुझे पिता जी की हालत देख कर बहुत दया आ रही थी। मैं धीरे से उठी। फिर मैं बाथरूम की ओर गई तो देखी कि पिता जी वॉशरूम में अपने लंड को हिला रहे थे। पर वह बेचारे लंड को भी ठीक से हिला नहीं पा रहे थे। मुझे उन पर बहुत दया आयी।
वह अचानक ही मेरी ओर देखें, मैं तो घबरा गई। मैं उनके सामने खड़ी थी और उन्हें देख रही थी। दरवाजा खुला हुआ था, और मुझे लगा कि वह नहीं देखेंगे, तब तक मैं भाग जाऊंगी। पर उन्होंने मुझे देख लिया, और मुझे देखते हुए लंड को हिला रहे थे। मुझे बहुत शर्म आई और मैं वहां से भाग कर कमरे में आ गई।
रात हुई, हम सब ने खाना-पीना खाया, और उसके बाद मैं अपने कमरे में सोने चली गई। पर मुझे तो नींद नहीं आ रही थी, क्योंकि मुझे पिता जी आज खाते हुए भी बहुत उदास लगे। पर मां उन्हें ज़रा भी देख नहीं रही थी। मैं जब भी उन्हें देखी, उनका उदास चेहरा देख कर मैं मायूस हो जाती, और वह जब मेरी और देखते, तो ऐसा लगता कि घूर रहे हो। तो मैं दूसरी तरफ नज़रें फेर लेती थी।
मैं फिर से उठ कर पिता जी के कमरे में देखने जाने लगी, कि वह लोग ठीक से सोये कि नहीं। तो मैं देखी कि पिता जी के कमरे की लाइट जल रही थी, और पिता जी कमरे में नंगे बिना धोती के बैठे हुए थे।मां दूसरी तरफ मुंह फेर कर सोई हुई थी उनका उदास चेहरा देख कर मेरा तो दिल ही रोने लगा।
मेरा अब दिमाग काम करना बंद कर दिया था। मुझे समझ नहीं आ रही थी कि अब क्या करूं? पिता जी का उदास चेहरा मेरे दिमाग पर बार-बार जोर डाल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उनकी इस हालत की जिम्मेदार मैं ही थी।
मैं धीरे-धीरे उनके कमरे में बढ़ने लगी। पिता जी मुझे देख रहे थे। वह मुझे ऐसे घूर रहे थे, जैसे उनकी ओर अप्सरा चली आ रही हो, और मैं भी अपने पिता जी की ओर बढ़ते जा रही थी।
जब हम दोनों पास आए तो पिता जी मुझे देख कर मेरे सामने खड़े हो गए। मैं शर्मा कर सर नीचे सर झुका ली। तब पिता जी मां की ओर देखें और मेरे हाथ को पकड़ कर मुझे अब मेरे कमरे की ओर लाने लगे।
पिता जी मां को बाहर से कमरे में बंद कर दिये, और मेरे कमरे में आकर मेरे कमरे की कुंडी लगा दी। फिर मुझे बिस्तर पर बैठा दिया। मुझे समझ नहीं आ रही थी कि अब क्या होगा। पर मैं अपने पिता जी को इस हालत में नहीं देख सकती थी। मैं उन्हें अपनी बाहों में भर ली।
पिता जी ने भी मुझे अपनी बाहों में ऐसे भर लिया, जैसे वह मुझे अपनी वहीं बेटी समझ रहे हो जो 5 साल की गुड़िया हो, और खेल कर आकर उनकी बाहों में सिमट गई हो। पिता जी मुझे बाहों में भर कर मेरी पीठ को हल्के-हल्के सहलाने लगे थे। मैं भी अब उनकी पीठ को सहला रही थी। मुझे अंदर से ग्लानी भी हो रही थी। पर पिता जी को हल्का खुश देख मुझे काफी सुकून मिल रहा था।
मैं अपने हाथ को नीचे ले गई तो पिता जी के लटका हुआ लंड मेरे हाथ को टच हुआ। मैं भी धीरे से लंड को अपने मुट्ठी में भर ली, तो पिता जी जैसे मचल उठे हो। उन्होंने मुझे कस के बाहों में पकड़ा, और मेरी दोनों चूचियों को अपनी छाती में दबा लिया।
मैं उनके लंड को हाथों में धीरे-धीरे सहला रही थी, और वह मेरी गर्दन और मेरे कान को चूम रहे थे। वह मेरे गालों को चूमते हुए मेरे होठों तक आए, और मेरे होठों की निचली पंखुड़ी को रसीले होंठ में दबा कर चूस लिया।
उन्होंने मेरी साड़ी निकालनी शुरू की, और कुछ ही देर में मुझे साड़ी और पेटीकोट निकाल कर केवल ब्रा और पेन्टी में कर दिया। फिर उन्होंने मेरी ब्रा के हुक को खोला, और मेरे चूचियों को निकाल दिए। मैं अब बेड पर लेट गई। वह मेरे ऊपर आए और मेरे दोनों चूचियों के निपल्स को बारी-बारी से चूसने लगे।
मैं अपनी आंखों को बंद करके उनकी पीठ को सहला रही थी, और वह मेरे निपल्स को चूस रहे थे। वह मेरे निपल्स को चूसते हुए नीचे की ओर गए, और पैंटी को सरका कर नीचे से निकाल दिए। उन्होंने अपने लंड को मेरी बुर पर सेट किया, और हड़बड़ाते हुए मुझे चोदना शुरू कर दिए। उनका लंड अभी मेरे बुर में नहीं गया था, पर वह मुझे चोद रहे थे।
फिर मैं उनके बाल और गाल को सहलाते हुए उन्हें नीचे की ओर लिटा दी। फिर उनके ऊपर जाकर उनके लंड को चूसने लगी। जैसे ही उनके लंड को मैं अपने मुंह में ली, वह तन कर पहले से ज्यादा बड़ा हो गया। पिता जी अपनी आंखों को बंद करके पूरी तरह से आनंद में खो गए थे।
मैं लगातार उनके लंड को चूस रही थी और वह अपनी आंखों को बंद करके मेरे सर पकड़ के अपने लंड पर दबा रहे थे। आज वह अपनी शादी-शुदा बेटी का मुंह चोद कर अपने आप को धन्य समझ रहे थे। वो आंख बंद करके मेरे सर को ऐसे सहला रहे थे, जैसे मैं उनकी बहुत ही प्यारी पुत्री हूं, और उनकी सेवा में पूरी तरह से न्योछावर हो चुकी हूं।
फिर मैं लंड को अपने मुंह से निकाली, और अपने पैरों को फैला कर उनके लंड के ऊपर बैठ गई। उनके लंड को अपनी बुर पर सेट की, और धीरे-धीरे बैठना शुरू की। धीरे-धीरे लंड मेरी बुर में पूरी तरह से समा गया, और मैं उनके ऊपर लेट गई, और धक्के लगाना शुरू कर दी। पिता जी तो जैसे अपनी आंखें बंद करके सातवें आसमान पर हो। उन्होंने मेरे सर को पकड़ा, और मेरे कोमल होंठ को अपने होठों में दबा कर चूसने लगे। और मैं लगातार ऊपर से धक्के लगा कर उनके लंड को अपनी बुर में अंदर-बाहर कर रही थी।
काफी देर ऐसे ही चुदती रही, और फिर मैं झड़ कर अपने पिता जी पर लेट गई। फिर मेरे गर्म लावे से उनका लंड पिघल गया और वो मेरी बुर में ही झड़ गए। फिर पिता जी ने मुझे नीचे लिटा दिया, और खुद मेरे नीचे आकर मेरे बुर को चाट कर पूरी तरह से साफ करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में मेरी बुर फिर से चुदने के लिए तैयार हो गई। मैं भी अब पिता जी को लिटा कर उनके लंड को चूस कर तन कर खड़ी कर दी।
इस बार पिता जी मुझे नीचे लिटा कर और खुद बिस्तर के नीचे गए और खड़े होकर मेरी बुर में अपना लंड डाल कर चोदना शुरू कर दिए। पिता जी मस्ती में अपनी आंखें बंद करके लगातार चोद रहे थे। उनके मुंह से काफी मादक आवाज निकल रही थी।
पिता जी: आआआह्ह्ह्ह बेटी तेरी रसीली बुर मुझे धन्य कर दिया।
मेरी भी पायलों की छन-छन की आवाज के साथ सिसकारियां निकल रही थी। थोड़ी देर हम ऐसे ही चुदाई करते रहे, और फिर दोनों झड़ गए। फिर पिता जी अपने रूम में मां के साथ जाकर सो गए, और मैं भी अपने रूम में ही सो गई। सुबह जब हम दोनों उठे तो एक-दूसरे से नज़र नहीं मिला पा रहे थे। परंतु पिता जी का खुश चेहरा देख मुझे बहुत ही खुशी हुई।
मैं नंगी ही जाकर बाथरूम में नहाने लगी, कि फिर तभी पिता जी आ गए और मैं हड़बड़ा गई। परंतु पिता जी इस बार पूरी तैयारी में थे।
उन्होंने बोला: मां तुम्हारी बाहर गयी है, और बस घर पर हम दोनों ही हैं। चलो बेटी आज जी भर कर जी लेते हैं।
फिर उन्होंने मुझे बाहों में भर लिया, और शावर ऑन करके ही मेरी चूत को चोदना शुरू कर दिया। मेरी कसी हुई बुर में उनका लंड जब जाता तो उनके मुंह से गजब प्रकार के सिसकारी निकलती, जो मुझे बहुत ही मादक लग रही थी।
फिर कुछ ही दिन बाद मेरे पति आ गए और मुझे वापस ससुराल लेकर चले गए। परंतु पिता जी से भी रहा ना गया। उन्होंने फिर से मां का तबीयत खराब होने का बहाना बना कर मुझे एक महीने के लिए मेरे बच्चों के साथ बुला लिया।
इस बार जब मैं आई तो पिता और मां अलग-अलग सो रहे थे। मां के पास बच्चों को मैं भेज देती थी सोने के लिए, और मैं अपने कमरे में सोती थी। आधी रात को पिता जी मेरा दरवाजा खटखटाते और अंदर आकर मेरी कसी हुई बुर को चोद लेते थे।
शरीर से तो पिता जी बूढ़े हो चुके थे। पर मन अभी भी जवान था। बहुत जल्दी उनका लंड खड़ा हो जाता था। मैं भी सोच ली थी कि अब पिता जी को पूरी तरह से शांत करके ही जाऊंगी।