पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-14
हिंदी सेक्स कहानी अब आगे से-
मम्मी को घर आते हुआ रात हो गई थी। मैं पहले ही घर लौट आया था। वैसे मम्मी ने यही समझा कि मैं दीदी के पास था, और उस पर नज़र रख रहा था। दीदी अपने कमरे में चुप-चाप बैठी थी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वो नहीं चाहती थी कि मम्मी को ज़रा भी शक हो कि मैंने उसका पीछा किया था।
मैं दरवाज़े के पास ही था, जब मम्मी अंदर आई। उसकी चाल थोड़ी धीमी थी, जैसे थकी हुई हो। लेकिन थकान के साथ उसके चेहरे पर कुछ और भी था। एक अलग तरह की राहत। जैसे कोई अंदर ही अंदर सुकून पा गया हो।
चेहरे पर हल्की सी गर्माहट थी, बाल थोड़े बिखरे हुए, पल्लू बार-बार कंधे से फिसलता जा रहा था। उसने खुद को संभालने की कोशिश की, मगर उसकी आंखों में जो चमक थी, वो सब कह रही थी। वो मुस्कुराई नहीं पर उसके होंठों के कोनों में एक अजीब सी राहत झलक रही थी।
उसने मुझसे नज़र मिलाने से थोड़ा बचाया, और बस बोली: सब ठीक है ना यहां?
मैंने सिर हिला दिया और बोला: हां, दीदी अपने कमरे में है, मैंने ध्यान रखा।
मम्मी ने चैन की सांस ली, वो जूते उतारते हुए बोली: तुम अच्छे बेटे हो। ऐसे टाइम पे साथ देते हो।
उसकी आंखों में थकावट थी, पर उस थकावट में एक अजीब सा सुकून भी छुपा था। मैं बस उसे देखता रहा, वो रसोई की तरफ बढ़ गई, जैसे कुछ नॉर्मल करने की कोशिश कर रही हो। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। पर मैं जानता था। जो हुआ, वो सिर्फ उसके और सलीम के बीच नहीं था। अब वो मेरे अंदर भी बस गया था।
मम्मी ने वापस आकर मुझसे कहा: मंजू को ज़्यादा समझाने की ज़रूरत नहीं है। मैं उससे धीरे-धीरे बात करूंगी। तुम बस उसको परेशान मत होने देना।
मम्मी मुझे खाना खाने को बोल कर सीधे दीदी के कमरे की तरफ बढ़ गई। दीदी दरवाज़ा बंद किए बैठी थी। मम्मी ने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया और बोली: मंजू बेटा मैं हूं, खोलो ज़रा।
अंदर से कुछ सेकंड सन्नाटा रहा। फिर दीदी ने दरवाज़ा खोला। उसकी आंखें लाल थी, पर वो चुप थी। मम्मी उसके सामने खड़ी हुई, ना गुस्से में, ना शर्म में, बस थोड़ी सी उलझन लिए।
मम्मी ने धीरे से कहा: मैं तुमसे लड़ने नहीं आई हूं, बस बात करने आई हूं।
दीदी कुछ नहीं बोली, बस एक तरफ हट गई और मम्मी अंदर चली गई। मैं भी थोड़ी दूरी से देख रहा था, लेकिन आवाजें साफ़ सुन पा रहा था।
मम्मी धीरे से बोली: सलीम ठीक लड़का है। जो हुआ, ठीक नहीं था, पर अब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी। अगर तुम चाहो, तो रिश्ता रख सकती हो। बस एक बात का ध्यान रखना, ये बात किसी और तक ना पहुंचे। मोहल्ले में बदनामी एक पल में होती है। और हमारी इज्जत का कोई मोल नहीं रखते लोग।
दीदी की आंखों में आंसू थे, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान भी आ गई। शायद वो सोच नहीं पा रही थी कि मम्मी उसके लिए इतना कुछ कहेगी। वो उठ कर मम्मी से लिपट गई।
दीदी: मम्मी मुझे माफ़ करना मैं आपको कितना बुरा-भला बोल गई। आपने जो मेरे लिए किया वो मैं कभी नहीं भूलूंगी।
मम्मी ने भी उसे कस कर गले लगा लिया। मैं बाहर खड़ा सब देख रहा था। जो मां-बेटी कभी एक-दूसरे की शक्ल तक नहीं देखना चाहती थी, आज वो एक-दूसरे को समझने लगी थी। लेकिन उनके बीच जो कुछ हुआ और जो मैंने अपनी आंखों से देखा, वो सच्चाई अब सिर्फ मेरे अंदर बंद थी।
दीदी के कमरे से लौट कर मम्मी सीधी अपने कमरे में चली गई। मैंने देखा, उसके कदम भारी लग रहे थे। जैसे किसी बोझ तले दबे हों। दरवाज़ा बंद करते ही वो धीरे-धीरे पलंग पर बैठ गई। उसका चेहरा अब सख़्त नहीं था, ना ही वो वही तेज़-तर्रार मम्मी लग रही थी जो दीदी को थप्पड़ मार रही थी। अब वो बस एक थकी हुई और उलझी औरत थी।
उसने धीरे से अपनी चूड़ियां उतारीं, फिर कान के झुमके भी। और फिर, बिना कुछ कहे या सोचे, अपना चेहरा दोनों हाथों में छुपा लिया। कुछ ही देर में मैंने देखा उसकी उंगलियों के बीच से आंसू बहने लगे।
धीरे-धीरे वो खुद से बुदबुदाने लगी: मैंने मंजू को कितना बुरा-भला कहा। उसे दोषी ठहराया। लेकिन मैं, मैं खुद क्या कर आई? मैं भी तो उसी रास्ते पर चली गई।
उसके आंसू रुक नहीं रहे थे। वो बार-बार पल्लू से अपनी आंखें पोंछती, पर हर बार पलकों के नीचे से नमी फिर से निकल आती। वो बिस्तर पर लेट गई, और दीवार की तरफ मुंह फेर लिया। शायद उसे खुद से भी नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं थी। मैं दरवाज़े के पास ही खड़ा था। मैं चुपके से वहां से निकल गया।
रात को दीदी के कमरे में बेड पर लेटा था। ऊपर से चादर ओढ़ रखी थी, पर नींद तो जैसे आंखों से गायब थी। दिल और दिमाग दोनों बेचैन थे। एक तरफ दिन भर की बातें घूम रही थी, दूसरी तरफ दीदी की हालत देख कर भी कुछ हलचल सी लगी थी।
थोड़ी देर में बाथरूम का दरवाज़ा खुला। दीदी बाहर निकली। बालों से पानी की बूंदें टपक रही थी। उसने एक हल्का गुलाबी नाईट वियर पहना था, जो उसके भीगे बदन से चिपका हुआ लग रहा था। उसका मूड अच्छा था, और चेहरा कुछ-कुछ शर्माया सा, पर साथ ही चेहरे पर सलीम से मिलने की अब मम्मी ने इजाज़त दी थी उसकी ख़ुशी भी थी।
वो खुद में खोई सी आई, पलंग पर बैठी, तकिये से टेक लगा कर बैठ गई। फिर धीरे से मोबाइल उठाया, और कॉल लगाने लगी। मैंने चादर के अंदर से देखा। उसने सलीम का नंबर डायल किया, और कॉल को स्पीकर पर डाल दिया।
फोन दो-तीन बार बजा, फिर सलीम ने उठाया। सलीम (आवाज़ में नींद सी): क्या बात है जानू, इतनी रात को याद आई?
दीदी (धीमे हँसते हुए): याद क्या आपको तो खबर देने आई हूं। मम्मी अब मान गई है हमारे रिश्ते के लिए।
सलीम: सच?! क्या बात है। आज तो दिन बन गया मेरा।
मंजू (आंखें मिचमिचाते हुए): अब आपको भी खुश कर दूं। वैसे भी आप बिना अपने लंड का पानी निकाले सोते नहीं ना?
सलीम हंस पड़ा और बोला: तू है ही ऐसी माल की तुझे याद करता हूं तो लंड खड़ा हो जाता हे। बोल, क्या पहन रखा है तूने अभी?
मंजू (जैसे उसे पता था ये सवाल आएगा): नहा के निकली हूं, बस नाईट ड्रेस है, बहुत पतली सी और बाल गीले है। आप होते ना तो मुझे पकड़ कर…
सलीम: मैं तो अभी सोच के ही बेहाल हो गया।
मंजू ने करवट ली और बिस्तर पर लेट गई। उसके हाथ अब उसके पेट पर थे, और एक पैर दूसरे पर टिकाया हुआ था। उसका चेहरा अब और भी नर्म हो गया था, जैसे कुछ महसूस कर रही हो।
दीदी (धीमी आवाज़ में): आपकी ये बातें, मेरे बदन में करंट जैसा दौड़ता है। बस पास आ जाओ, आपकी बाहों में सोना है मुझे।
सलीम (जैसे वो भी बहक रहा हो): आजा तो सही, ऐसे ही बातों से तुझे भी नींद नहीं आएगी, और मुझे भी बेचैन करेगी।
मंजू: तो बोलिए ना क्या करूं मैं? आपको अपना बनाऊं फोन पर?
सलीम: हां ऐसे ही तू बस बोलती रह, मैं तेरी आवाज़ से ही पागल हो रहा हूं। जान तुमने तो मेरा लंड खड़ा कर दिया।
मैं चुप-चाप ये सब सुन रहा था। चादर के नीचे मेरी सांसें थोड़ी भारी हो रही थी, पर मैंने खुद को शांत रखा। दीदी को अभी भी यही लग रहा था कि मैं सो रहा था। अब उसकी आवाज़ और धीमी हो गई थी, जैसे वो सलीम से दूर होते हुए भी उसे महसूस कर रही हो।
दीदी: आप होते तो अब मेरे ऊपर होते। मैं आपके सीने पर सिर रख देती। आप मेरी गर्दन पर होंठ रखते और फिर…
वो बीच में रुक गई, उसकी आंखें आधी बंद हो चुकी थी, होंठ भीग रहे थे, और उसके हाथ अब धीरे-धीरे अपनी नाभि के पास फिसलने लगे थे, और अपनी शॉर्ट्स के अंदर तक चला गया था। उसकी सांसें तेज़ हो रही थी, पर वो चुप थी। फोन अभी भी चालू था, और सलीम उसकी हर धीमी आवाज़ पर कुछ ना कुछ कह रहा था।
सलीम: जान अब मुझसे रहा नहीं जा रहा। मैं तुझसे दूर रहूं, ये मुझसे नहीं होगा। अभी तेरी चुदाई करने का मन कर रहा हे।
दीदी अब आंखें बंद किए बस उसकी आवाज़ पर खोती जा रही थी। उसके होंठों पर एक सुकून था, पर उस सुकून में जो सलीम का मोटा लंड लेनी की चाहत थी, वो मैं साफ देख रहा था।
वो दोनों इस कॉल में जैसे एक-दूसरे को महसूस कर रहे थे। लफ़्ज़ों के ज़रिए, सांसों के ज़रिए और मैं, बस चुप-चाप देख रहा था। अब मैं जो ना कुछ कह सकता था, ना कुछ रोक सकता था। दीदी और सलीम की बाते सुन कर मेरा लंड भी खड़ा हो गया था।
फोन पर दीदी की हंसी अब धीमी हो गई थी। उसने एक लम्बी सांस ली और धीरे से बोली: सलीम जी अब और बात मत करो, वरना मैं सच में पागल हो जाऊंगी। फिर आपसे चुदवायें बिना नींद नहीं आयेगी।
सलीम की हंसी उधर से आई: ठीक है जान, अब सो जा लेकिन तुझसे मिलने का अब और सब्र नहीं हो रहा।
दीदी ने एक पल चुप रह कर बोला: मम्मी मान गई है ना, अब सब ठीक होगा।(सलीम बस हम्म कह कर चुप हो गया।)
दीदी ने मीठे सुर में कहा: गुड नाइट सलीम जी।
और फिर फोन कट गया। मैं वहीं बगल के बेड पर चुप-चाप लेटा था, चादर ओढ़े। आंखें खुली थी, पर सांस थामी हुई। जो कुछ भी सुना, वो मेरे दिल में अब तक घूम रहा था। दीदी को शायद अंदाज़ा भी नहीं था कि मैं सब सुन चुका हूं। उसने फोन एक तरफ रख दिया और बिस्तर पर लेटते हुए एक हल्की सी मुस्कान के साथ आंखें बंद कर लीं।
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