इस सबकी शुरुआत तब हुई जब ग्रेजुएशन के कुछ दिनों बाद स्नेहा दीदी को बैंगलोर में जॉब इंटरव्यू के लिए अचानक जाना था। रात का समय था, तो मम्मी-पापा ने उनको अकेले जाने के लिए मना किया, और साथ में मुझे ले जाने के लिए कहा।
लगभग रात के दस बजे हमारी स्लीपर बस निकल पड़ी। हम दोनों एक-दूसरे के पास बैठे थे, वह खिड़की की तरफ बैठ गई थी और मैं उनके बगल में बैठा था।
आगे बढ़ने से पहले मैं आपको अपनी दीदी के बारे में बताता हूं। उनका नाम स्नेहा है, और वह मुझसे चार साल बड़ी है। उनके शरीर की बनावट ऐसी थी, कि कोई भी एक बार देखे तो नज़र हटाना मुश्किल हो जाए। कद लगभग 5’5″ होगा, छरहरी लेकिन बेहद कर्वी फिगर, कमर इतनी पतली कि हाथ से पकड़ लो तो पूरा घूम जाए। लेकिन उसके ऊपर और नीचे का हिस्सा बेहद भरावदार।
सबसे ज़्यादा ध्यान खींचने वाली चीज़ थी उनके उभरे हुए गोल निपल्स, जो हमेशा उनकी चुस्त कुर्तियों और टाइट टी-शर्ट्स में साफ़ उभरे रहते। वो 36C साइज की ब्रा पहनती थी, और उस उभार की हर हलचल किसी का भी ध्यान खींचने के लिए काफी होती। उनका चलना, बैठना या झुकना, सब कुछ बेहद कामुक अंदाज़ लिए होता, भले ही वो कभी खुद उसका इरादा ना रखती हो।
उनकी कमर के नीचे चौड़ी हिप्स थी, जो हर पैंट या सलवार में उभर कर दिखती थी। ऐसे में जब उन्होंने यात्रा के लिए एक फिटेड जीन्स और एक ढीली सी सफेद टॉप पहनी, तो उनकी ब्रा की स्ट्रैप्स और सीने की हल्की हलचल तक साफ़ दिख रही थी। वो पूरी तरह अनजाने में मेरे अंदर कुछ जगा रही थी।
ऐसा भी नहीं था कि मैं पहली बार उनको अलग नजरों से देख रहा था। यह तो काफी पहले से शुरु था। जब भी वो घर में खुले बालों में गीले तौलिए के साथ अपने कमरे से निकलती, या कभी नीचे झुक कर कोई चीज़ उठाती, मेरी नज़रें खुद-ब-खुद उनके शरीर की तरफ खिंच जाती। कई बार मैं दरवाज़े के पीछे से उन्हें चुप-चाप देखता, जब वो अपने बाल सुखाते हुए शीशे के सामने खड़ी होती, या कपड़े बदल रही होती, और खिड़की से हल्का सा पर्दा हटा होता।
यह बात उनको भी पता थी कि मैं उनको अलग नज़रों से देख रहा हूं। कई बार वो जान-बूझ कर ऐसे कपड़े पहनती जो उनके सीने या कमर को उभारते, और जब मेरी नज़रें उन पर ठहरती, तो वो हल्की सी मुस्कान देती, मानो मुझे और उकसा रही हो। कभी-कभी जब वो मुझसे बहुत पास से बात करती, तो उनके शरीर की गर्मी महसूस होती, और उनकी आंखों में एक अजीब सा इशारा दिखता।
यह सब धीरे-धीरे और भी स्पष्ट होता चला गया। कभी वह गलती से इतना झुकती कि उनकी गहरी क्लीवेज की झलक दिख जाए, या फिर अपने ब्रा और पैंटी को बिना किसी झिझक के कमरे में सुखाने रख देती, बिलकुल मेरी आंखों के सामने। कई बार वो छोटे शॉर्ट्स पहन कर इस तरह बैठती कि उनके पैरों के बीच की झलक भी मुझे मिल जाती। यह सब इतना बार-बार होने लगा कि अब यह हादसा नहीं, जान-बूझ कर किया गया खेल लगने लगा था।
बस चल रही थी और वह कुछ घबराई सी लग रही थी। इसलिए मैंने उनका हाथ हौले से पकड़ा, और पूछ लिया।
“क्या हुआ दीदी?”
उन्होंने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा कर कहा “कुछ भी नहीं। बस थोड़ा-सा टेंशन हो रहा है, इंटरव्यू की वजह से।”
और उसके बाद हम दोनों बातें करने लगे। कैसे उनको उस जॉब की बेहद जरूरत है, और वह घर का ख्याल रखना चाहती है।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे पुछा, “तेरी कोई गर्लफ्रेंड है? और क्या तुमने अभी तक सेक्स किया है कि नहीं?”
मैं थोड़ा झेंप गया लेकिन सच बोल दिया, “नहीं दीदी, अब तक कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनी… और मैं अभी तक वर्जिन हूं।”
थोड़ी देर चुप रह कर वो बोली, “मैं भी। कॉलेज में किसी लड़के से बात तो होती थी, लेकिन कभी किसी को पास आने नहीं दिया। ना भरोसा हुआ, ना मन।”
थोड़ी देर में बस एक ढाबे के पास रुकी। उन्होंने मेरी ओर थोड़ा झिझकते हुए देखा और धीरे से बोलीं, “मुझे वॉशरूम जाना है… पर थोड़ा डर लग रहा है अकेले।”
मैंने झट से कहा, “मैं साथ चलता हूं दीदी।”
हम दोनों नीचे उतर गए। अंधेरा था, लेकिन ढाबे की रोशनी और कुछ स्ट्रीट लाइट्स थीं। वो इधर-उधर देखने लगी कि कहां जा सकती थी, लेकिन कोई साफ जगह नहीं दिख रही थी। उनके चेहरे पर हल्की घबराहट थी।
मैंने पूछा, “आप यहीं रुकिए, मैं देखता हूं कोई ढंग का कोना मिल जाए तो।”
कुछ देर बाद मुझे एक कोना मिला जो थोड़ा अंधेरा था और थोड़ी झाड़ियां भी थी। मैंने उन्हें इशारे से बुलाया और कहा, “यहां आ जाइए दीदी, कोई नहीं देखेगा।” वो झिझकती हुई वहां आई, लेकिन अब भी थोड़ी डरी हुई थी।
धीरे से उन्होंने मेरी ओर देखा और बोली, “तू यहीं पास में खड़ा रहना, ठीक है? बस थोड़ा सा कॉन्फिडेंस मिलेगा।”
मैंने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और एक-दम पास खड़ा हो गया, ताकि वो सुरक्षित महसूस करें।
उन्होंने हिचकिचाते हुए अपनी जीन्स नीचे खिसकाई, और झाड़ियों की ओट में हल्का सा नीचे झुक गई। जैसे ही उन्होंने अपनी पैंट उतारी, मेरी नज़र उनके मखमली सफेद पिछवाड़े पर पड़ी जो आधे चांद की तरह दमक रहा था।
कुछ ही पलों में एक पतली-सी धार बहने की आवाज आई, तेज़ लेकिन मधुर, जैसे शांत जगह में बहता कोई झरना हो। उस आवाज़ में एक अजीब-सी गर्मी और अंतरंगता थी, जो मेरे शरीर में सिहरन दौड़ा गई। मैं सांस रोक कर खड़ा रहा, और बस उसी आवाज़ को महसूस करता रहा।
कुछ देर बाद उन्होंने अपनी जीन्स वापस ऊपर खींची, और मेरी ओर देखा। मैंने झट से नजरें फेर ली, जैसे मैंने कुछ देखा ही ना हो। फिर हम दोनों धीरे-धीरे वापस बस की ओर चल पड़े। वापस आकर अपनी सीट पर बैठने के कुछ देर बाद बस फिर से चल पड़ी। थोड़ी देर बाद बस के सारे लाइट्स बंद हो गए। दीदी अब थकी सी लग रही थी, और थोड़ा सोना चाहती थी।
मैंने खिड़की के परदे हल्के से खींच दिए ताकि बाहर से कोई ना देख सके और उन्होंने आराम से अपना सिर सीट के कोने पर टिकाया और आंखें बंद कर ली। कुछ ही देर में उन्होंने धीरे-धीरे अपना सिर मेरी तरफ मोड़ लिया, और वह मेरे कंधे पर टिक गया। उनकी गर्म सांसें मेरी गर्दन के पास महसूस हो रही थी, और उनकी ढीली सफेद टॉप की नेकलाइन थोड़ी और नीचे खिसक गई थी। अंधेरे में भी उनकी गहरी क्लीवेज साफ़ नज़र आ रही थी, जैसे चांदनी में किसी घाटी की झलक। मैं सांस रोक कर उस दृश्य को देखता रहा, दिल की धड़कनें तेज़ होने लगी।
धीरे-धीरे मैंने अपनी जांघों को थोड़ा पास खिसकाया, ताकि उनका हाथ हल्के से मेरी गोद पर आ जाए, ऐसे जैसे वो खुद सोते-सोते रख गई हों। जब उनका हाथ मेरी जांघ पर पड़ा, मैंने हल्का सा सरकाया और अपने लंड के ऊपर उसकी उंगलियों को महसूस कि।
सांसें तेज हो चुकी थी, और मैंने एक कदम और बढ़ाते हुए उनके टॉप का ऊपर का एक बटन धीरे से खोल दिया, इतना धीरे कि उन्हें महसूस भी ना हो। जैसे ही बटन खुला, उनकी पूरी क्लीवेज मेरी आंखों के सामने थी, और मैं उसे अंधेरे में भी साफ-साफ निहार सकता था।
धीरे से मैंने अपना हाथ उनकी टॉप के नीचे सरकाया, और ब्रा के ऊपर से उनका एक निपल अपनी हथेली में लिया। मेरी उंगलियों में जैसे कोई गर्म, मुलायम, भारी सा गोला आ गया था। वो स्पर्श मेरे पूरे शरीर में बिजली-सी दौड़ा गया। ब्रा के कपड़े के आर-पार उनके निपल की गुदगुदी सी नोक महसूस हो रही थी। मैंने हल्के से दबाया, बस महसूस करने के लिए, समझने के लिए कि ऐसा स्पर्श कैसा लगता है।
लेकिन उसी समय बस अचानक गड्ढे में उछल गई। एक झटका सा लगा और दीदी की नींद खुल गई। मैंने फौरन अपनी आंखें बंद कर ली, जैसे मैं गहरी नींद में हूं।
उन्होंने मेरी ओर देखा, शायद कुछ महसूस किया, लेकिन कुछ कहा नहीं। बस धीरे से मेरा हाथ अपने सीने से हटाया, अपनी टॉप के बटन को फिर से बंद किया, और एक गहरी सांस लेकर दोबारा मेरे कंधे पर सिर रख कर सो गई।
सुबह करीब छह बजे बस बैंगलोर पहुंच गई। बाहर हल्की धुंध और ठंडी हवा थी। हम दोनों ने एक टैक्सी ली और पहले से बुक किए गए एक छोटे से लॉज की तरफ निकल पड़े जो ऑफिस से ज्यादा दूर नहीं था।
लॉज में पहुंचते ही हमने रिसेप्शन से चेक-इन किया और अपना एक कमरा लिया। कमरा साधारण था, लेकिन साफ-सुथरा और प्राइवेट। दोनों ने अपने बैग रखे और फिर दीदी ने कहा, “मैं थोड़ा फ्रेश हो जाती हूं… पूरा सफर थका देने वाला था।”
मैंने सिर हिलाया और वह वॉशरूम की तरफ चली गईं। मैं वहीं बेड पर बैठ गया, खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगा।
कुछ ही देर में अंदर से शॉवर की आवाज आने लगी। गर्म पानी के बहने और शरीर से टकराने की आवाजें मेरे भीतर कुछ जगा रही थीं। दीदी नहाते वक्त कभी-कभी गुनगुनाने लगती थी, और उनकी वो धीमी आवाज कमरे में फैल रही थी।
मैंने खुद को थोड़ा संयमित किया और टीवी ऑन कर लिया, ताकि ध्यान भटके। लेकिन हर गुजरते मिनट के साथ मेरा दिल और दिमाग उन्हीं की तरफ खिंच रहा था।
करीब 20 मिनट बाद वो बाहर आई। बाल भीगे हुए, चेहरे पर पानी की बूंदें, और शरीर पर एक बड़ा टॉवल लपेटा हुआ था जो उनके ऊपरी शरीर से लेकर घुटनों तक ढका हुआ था।
वो मेरे सामने से निकली, अलमारी से कपड़े निकाले और बिना कुछ बोले वापस वॉशरूम में चली गई। कुछ देर बाद जब वो फिर से बाहर आई, तो उन्होंने काले रंग की हाफ स्कर्ट और सफेद शर्ट पहन रखी थी। वो जब मेरे सामने आकर बैठी, तो उनकी स्कर्ट थोड़ी ऊपर सरक गई थी, और मैं साफ देख पा रहा था कि उन्होंने अंदर गुलाबी रंग की पैंटी पहनी हुई थी। वो सहज थी, जैसे उन्हें इस बात का एहसास भी ना हो कि मैं क्या देख रहा हूं।
मैंने नज़रें हटाने की कोशिश की, लेकिन उस नज़ारे ने मेरे मन को पूरी तरह से बांध लिया था। दीदी मेकअप करने में लगी रही और मैं बस उन्हें निहारता रहा। थोड़ी देर बाद दीदी इंटरव्यू के लिए निकल गई। मैं वहीं लॉज में अकेला रह गया। मैंने सोचा कि थोड़ी देर सो जाऊं, लेकिन आंखों के सामने बार-बार वही गुलाबी झलक घूम रही थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरा मन और बेचैन होता गया।
करीब दो घंटे बाद मैंने तय किया कि मुझे फ्रेश हो जाना चाहिए, शायद नहाने के बाद दिमाग शांत हो जाए। मैंने अपना तौलिया और कपड़े उठाए और बाथरूम की ओर बढ़ गया। जब मैंने बाथरूम का दरवाज़ा खोला, तो वहां ज़मीन पर दीदी की गीली ब्रा और पैंटी पड़ी थी। ब्रा अभी भी नमी से भरी थी, और पैंटी से हल्की सी खुशबू आ रही थी।
मैं थोड़ी देर तक उन्हें देखता रहा, फिर खुद को रोक नहीं पाया। मैंने धीरे से दीदी की पैंटी उठाई और उसे अपने चेहरे के पास ले जाकर उसकी खुशबू को महसूस किया। उस नर्म कपड़े की महक ने मुझे भीतर तक हिला दिया। फिर मैंने उनकी ब्रा भी उठाई और उस पर अपना चेहरा रगड़ते हुए खुद को उनके इतने करीब महसूस किया जैसे वो मेरे सामने हों।
मेरे भीतर की भूख अब काबू से बाहर थी। मैंने ब्रा और पैंटी को अपने सामने बिछाया और धीरे-धीरे अपने कपड़े उतार दिए। मेरा अंग पहले से ही पूरी तरह से खड़ा हो चुका था। मैंने दीदी की पैंटी को अपने हाथों में लेकर उस पर धीरे-धीरे अपने लंड को रगड़ना शुरू किया, हर स्पर्श के साथ ऐसा लग रहा था जैसे मैं खुद उनके बेहद करीब हूं।
कुछ ही देर में मेरी सांसें तेज़ हो गई और मेरी गति तेज होती चली गई। आखिरकार, मैं चरम पर पहुंचा और मेरे अंदर का सारा उबाल दीदी की ब्रा और पैंटी पर गिर पड़ा।
इसके आगे क्या हुआ, वो अगले पार्ट में पता चलेगा। फीडबैक के लिए [email protected] पर मेल करे।