हिंदी सेक्सी कहानी अब आगे-
दूसरे दिन सुबह मम्मी बाथरूम से नहा कर निकली, बाल अभी हल्के गीले थे। आईने के सामने खड़ी हुई, हल्का-सा मॉइस्चराइज़र लगाया और फिर पाउडर से चेहरा सेट किया। बहुत ज्यादा मेकअप नहीं, बस थोड़ा काजल, मस्कारा और गुलाबी लिपस्टिक, जो उसके चेहरे को एक-दम फ्रेश दिखाती थी।
आज उसने हल्की सी क्रीम रंग की शिफॉन साड़ी निकाली बहुत पतली, जो पहनने के बाद उसकी कमर और शरीर की शेप साफ नज़र आने लगती थी। साड़ी के बॉर्डर पर हल्का सा गोल्डन काम था। ब्लाउज थोड़ा फिट था, स्लीवलेस और पीछे से डीप कट, लेकिन लाल भड़कीला इतना कि जो भी देखे, एक पल को नजरें रुक जाएं।
साड़ी पहनते वक्त उसने जान-बूझ कर कमर पर थोड़ी नीचे बांधी, ताकि उसकी पतली कमर और पेट की हल्की सी झलक साफ दिखे। पल्लू को कंधे पर ढीला छोड़ दिया एक-दम लहराता हुआ, जिससे चलने पर वो हर बार उसकी चाल में हिलता।
बालों को उसने खुला ही रहने दिया, बस एक साइड कर के सुलझा दिया। कानों में छोटे से झुमके, हाथ में पतली चूड़ियां और एक सिंपल घड़ी। गले में कुछ नहीं ताकि गर्दन का खालीपन और खूबसूरती खुल कर दिखे। परफ्यूम का एक हल्का सा स्प्रे किया जो बहुत तेज नहीं, बस पास से गुजरने पर महसूस हो।
मम्मी ने अपना बैग उठाया, एक बार आईने में खुद को ऊपर से नीचे तक देखा। उसकी आंखों में अब वो चुप-चाप झिझकने वाली विधवा नहीं थी। वो अब एक पूरी औरत थी, जो सलीम ने उनकी चुदाई का असर छोड़ा था। पर कल सलीम से मिल कर लौटने के बाद उसके चेहरे पर जो हल्की सी मुस्कान थी, वो आज भी कहीं बाकी थी।
मम्मी ने ऑफिस जाते-जाते मुझसे बस इतना कहा: मंजू का ध्यान रखना।
मैं सिर हिला कर चुप हो गया। मम्मी के जाते ही दीदी अपने कमरे से बाहर आई। उस दिन दीदी ने ख़ास तैयारी की थी। उसने हल्के गुलाबी रंग की एक फिटिंग वाली कुर्ती पहनी थी, जो उसकी कमर को बारीकी से उभारती थी। कुर्ती की नेकलाइन थोड़ी गहरी थी, जिससे उसका क्लीवेज हल्के से दिख रहा था। इतना कि ध्यान खिंच जाए, लेकिन अश्लील ना लगे। कुर्ती की फिटिंग इतनी टाइट थी कि उसकी चूचियों का उभार साफ़ झलक रहा था और चलने पर हल्की हरकत भी दिखती थी।
उसने नीचे स्किन-फिट डेनिम पहना था, जो उसकी गांड की गोलाई को पूरी तरह उभार रहा था। टाइट जींस उसके जांघों की शेप को साफ़ दिखा रही थी, और जब वो चलती थी तो कपड़ा जैसे उसके शरीर से चिपक कर उसके हर कर्व को परिभाषित करता था।
उसकी बाजुएं खुली थी, कुर्ती की स्लीव 3/4 थी। जिससे उसकी कोहनियां और कलाइयां पूरी तरह नज़र आ रही थी, और उन पर पहनी पतली चूड़ियां हर हलचल पर खनकती थी।
उसने बाल खुले छोड़े थे, जो उसकी पीठ पर गिरते थे और जब वो पलटती थी, तो बालों के साथ उसकी पीठ की झलक भी मिलती थी, क्योंकि कुर्ती की बैक भी थोड़ी डीप थी। गले में एक पतली चेन और होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक — कुल मिला कर वो एक ऐसी लड़की लग रही थी जो मासूम भी थी, और जानती भी थी कि उसका हुस्न कैसे असर करता है। दीदी को देख कर मैं समझ गया वो सलीम से मिलने जा रही थी। फिर भी मैंने उससे पूछा-
मैं: कहीं जा रही हो?
दीदी ने मुझे देख कर बस मुस्कुरा दिया और बोली: सलीम जी के साथ थोड़ा बाहर जाना है। ज्यादा देर नहीं लगाऊंगी।
वो सैंडल पहनती है, हैडबैग उठाती है, और निकल जाती है। लेकिन उसके उस जाने में एक बेकरारी थी, जैसे वो घंटों से इंतज़ार कर रही हो सलीम के पास जाने का।
मैं उस दिन दोपहर के टाइम घर में ही था, बस अपने कमरे में पड़ा था। तभी दरवाज़ा खुला और मम्मी अंदर आई। शायद वो ऑफिस से जल्दी लौट आई थी। उसके चेहरे पर थोड़ा थकान भी था, पर आंखें ऐसी जैसे किसी बात पर ध्यान दे रही हों।
कुछ देर बाद दीदी भी आ गई। जैसे ही दरवाज़ा खोला, मैं समझ गया कि ये सलीम से चुद कर आई थी। उसके चेहरे पे लाली थी, होंठ थोड़े सूखे थे लेकिन उनमें नमी चमक रही थी। बाल ज़रा उलझे से थे और कपड़े जैसे जल्दी-जल्दी पहने हों। मम्मी ने बस एक नज़र दीदी को देखा और फिर मुस्कुरा कर पूछा: कहां से आ रही है तू?
दीदी थोड़ी घबरा गई, बोली: कुछ नहीं मम्मी पिंकी के घर गई थी, वो बुला रही थी ना कल से।
मम्मी पास गई, उसके गाल को हल्के से छूते हुए बोली: अच्छा? पिंकी के घर? फिर ये गाल क्यों ऐसे गुलाबी हो गए है? और ये बाल, ये होंठ मुझे तो साफ़ समझ आ रहा है मंजू, तू सलीम से मिल कर आई है ना?
दीदी की सांस अटक गई। वो एक पल चुप रही, फिर सर झुका लिया। थोड़ी शरमाते हुए मुस्कुराई और बोली: हां मम्मी, पर आपको कैसे पता चल गया?
मम्मी हंसते हुए बोली: तेरा चेहरा सब बोल रहा है, मंजू। मैं तेरी मां हूं, और अब तेरे चेहरे को पढ़ना सीख गई हूं।
मैं दूर से ये सब सुन रहा था, पर जैसे मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरे घर में ये सब क्या हो रहा था? दीदी की झिझक भी प्यारी लग रही थी, और मम्मी का चिढ़ाना भी। दोनों अब पहले जैसे नहीं थी। कुछ बदल गया था उनके बीच, और मुझे लग रहा था, ये सब सलीम का कमाल था। मम्मी ने दीदी की ठुड्ढी हल्के से ऊपर की, उसकी आंखों में देखा और थोड़ा मुस्कुराई।
फिर बोली: अच्छा तो अब मुझे छुपा कर मिलने जाने लगी है सलीम से? (उसने हल्के चिढ़ाते लहजे में कहा।)
दीदी धीरे से बोली: नहीं मम्मी, वो बस आपको बताने से डर लग रहा था।
मम्मी: क्यों? अब तो बता ही चुकी हूं कि तुम दोनों का रिश्ता मुझे बुरा नहीं लगता।
मम्मी फिर थोड़ी देर चुप रह कर, कुछ सोचती रही। फिर धीरे से बोली: देख मंजू, मैं जानती हूं ये सब आसान नहीं है। तुम जवान हो, सलीम भी मर्द है। ऐसे में दिल का बहकना भी समझ में आता है। पर ये दुनिया हम जैसी औरतों को इतनी आज़ादी नहीं देती। लोग बोलते है बहुत कुछ बोलते है। मैं नहीं चाहती कि तेरे नाम पर कोई उंगली उठाए।
दीदी की आंखें थोड़ा भर आई, लेकिन उसने सर हिलाया और बोली: मैं समझती हूं मम्मी । मैं बहुत संभल के रहूंगी।
मम्मी ने एक लंबी सांस ली, फिर बोली: तू सलीम से मिल, पर छुपा के, समझदारी से। कोई कुछ देख ना ले, कोई शक ना करे। घर की इज्जत भी बची रहे और तेरे मन का प्यार भी।
दीदी अब एक-दम शांत खड़ी थी, जैसे हर शब्द को अपने अंदर उतार रही हो।
मम्मी ने फिर थोड़ा मज़ाक करते हुए कहा: वैसे एक बात बता, इतना निखार और ये मुस्कान, सलीम ने कुछ ज़्यादा ही प्यार दिया लगता है आज?
दीदी की हल्की सी हंसी निकल गई, उसने शर्मा कर कहा: आप भी ना मम्मी!
मैं ये सब सुन रहा था और सोच रहा था कि ये घर कितना बदल गया था। मम्मी जो कभी मंजू दीदी को घर से अकेले निकलने नहीं देती थी। सलीम का पता चला तो दीदी पर हाथ उठा देती थी, अब खुद उसे छुपा कर सलीम से मिलने की इजाज़त दे रही है।
कुछ दिन बाद रात को सब काम निपटाने के बाद मैं अपने बिस्तर पर था, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। कमरे की लाइट बंद थी, बस खिड़की से आती हल्की चांदनी कमरे में फैल रही थी। तभी दीदी धीरे से मेरे पास आकर बैठ गई।
उसने धीमे से पूछा: सोया नहीं तू?
मैंने कहा: नहीं नींद ही नहीं आ रही।
वो भी चुप-चाप बैठी रही कुछ देर, फिर बोली: तुझे एक बात पूछनी है।
मैंने कहा: पूछो।
दीदी थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली: तुझे नहीं लगता मम्मी कुछ ज़्यादा ही चुप हो गई है आज-कल?
मैंने उसकी तरफ देखा, बोला: हां पर आप क्यों पूछ रहे है ऐसा?
दीदी: मतलब कुछ दिन पहले उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सलीम से रिश्ता रख सकती हूं, पर पहले तक तो मुझे थप्पड़ मार के कह रही थी कि घर की इज़्जत मिट्टी में मिला दी। अब अचानक से कैसे बदल गई?
मैं चुप था।
दीदी ने गहरी सांस ली: मुझे ना, कुछ तो गड़बड़ लग रही है।
उसने गहरी सांस ली और बोली: मम्मी अचानक से इतनी बदल कैसे गई? पहले तो उन्होंने मुझे सलीम के साथ देख लिया था तो कितना मारा था। अब वही खुद कह रही है कि मैं उससे मिल सकती हूं। और वो भी ऐसे जैसे किसी को पता ना चले।
मैं थोड़ा चुप हो गया। मैं जानता था सच्चाई क्या थी, पर दीदी को क्या कहता? फिर भी थोड़ा संभाल कर बोला: शायद मम्मी को अब समझ में आया कि प्यार को रोका नहीं जा सकता। और तू भी तो अब बच्ची नहीं रही।
दीदी थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली: मुझे ना कुछ अजीब लग रहा है।
वो मुझे देख कर मुस्कुराती है। पर उनकी आंखों में कुछ और होता है। जैसे कुछ छुपा रही हों। मैंने उसकी तरफ देखा। उसकी आवाज़ में उलझन भी थी, थोड़ा डर भी।
दीदी बोली: कभी-कभी लगता है, कहीं उन्होंने सलीम जी से कुछ कहा तो नहीं? या खुद सलीम जी ने कुछ?
अब मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं उसे देखता रहा। उसके चेहरे पर अब वो बेफिक्री नहीं थी जो आज दिन में सलीम से मिल कर आने के बाद थी।
मैंने बस धीरे से कहा: देखो दीदी, मम्मी ने अगर कुछ कहा होता, तो तुझे बता देती। और अगर कुछ छुपा रही है तो हो सकता है वो आपका रिश्ता ही बचाने के लिए हो।
दीदी ने धीरे से सर हिलाया। फिर बोली: बस दिल नहीं मानता। कुछ तो है जो उन्होंने नहीं बताया।
फिर थोड़ी देर चुप-चाप बैठी रही। शायद सोच रही थी या शायद सलीम के साथ बिताया हुआ दिन दोबारा जी रही थी।
थोड़े देर बाद दीदी ने अचानक कहा: थैंक्यू!
मैं: किस लिए?
दीदी: बस मुझे सुनने के लिए। तू ना होता तो मैं ये सब किससे कहती?
मैंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा: मैं हमेशा आपके साथ हूं। मेरे से आप कुछ भी कह सकती हो।
वो थोड़ा सा मुस्कुरा दी मगर उसकी आंखों में अभी भी वो सवाल थे, जिनके जवाब उसे मम्मी से नहीं, वक़्त से मिलने वाले थे।आप को अभी तक की कहानी कैसी लगी मुझे [email protected] पर मेल करे।