पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-12 (Padosi Ne Todi Meri Didi Ki Seal-12)

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पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-11

हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-

मम्मी गोदाम के अंदर चली गई थी, तो उनके कुछ देर बाद मैं भी धीरे से अंदर गया। मैं एक तरफ रखे माल के पीछे छिप गया, जहां से मैं सब कुछ साफ-साफ देख पा रहा था।

मम्मी उस वक्त अपनी तेज आवाज़ में सलीम को डांट रही थी, जैसे किसी गलती पर उसे फटकार लगा रही हों। सलीम एक कुर्सी पर चुप-चाप बैठा उनकी बात सुन रहा था। उसने बस एक नीली निक्कर पहन रखी थी। उसकी छाती पर पसीना साफ़ दिख रहा था, जिसे देख कर लग रहा था जैसे उसने अभी-अभी कोई भारी काम किया हो या कसरत करके आया हो।

मम्मी का गुस्सा साफ़ दिख रहा था। वो कुछ-कुछ ऐसे लग रही थी जैसे कोई गुस्से में भरी बिल्ली हो। लेकिन तभी सलीम कुर्सी से उठ कर मम्मी के पास आ गया। मम्मी उसे अचानक पास देख कर थोड़ी चुप हो गईं।

मैंने ध्यान दिया कि मम्मी की नज़रें बार-बार सलीम की मजबूत छाती और उसकी उभरी मांसपेशियों पर टिक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ पल के लिए भूल गई हों कि वो वहां किस बात पर गुस्सा करने आई थी। सलीम मम्मी के चेहरे की बदलती भावनाएं गौर से देख रहा था। उसकी मुस्कान थोड़ी और गहरी हो गई।

सलीम धीरे से बोला: आपकी आंखों में साफ दिख रहा है। आप अब सिर्फ मेरी बातों से नहीं, मुझसे भी लड़ रही है। मुझसे या शायद खुद से।

मम्मी ने तुरंत नजरें फेर ली, लेकिन उनके हाथ अब कांप रहे थे। उन्होंने जवाब देने की कोशिश की, मगर आवाज़ जैसे हलक में ही अटक गई। सलीम थोड़ा और करीब आया, उसकी आवाज अब और भी धीमी और गहरी हो चुकी थी। जैसे किसी ज़ख्म पर हाथ रख रहा हो-

सलीम: एक औरत सब समझती है। दूसरे की आंखों से भी और अपने मन की आवाज़ से भी। मैं जानता हूं मंजु को मुझसे दूर ले जाना आपके लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि शायद अब आप भी खुद को मुझसे दूर नहीं रख पा रही।

मम्मी ने झटके से उसकी तरफ देखा, जैसे खुद को संभालने की कोशिश कर रही हो: बकवास बंद करो, सलीम! मैं मां हूं उसकी! तुम्हारी ऐसी बातों से डरने वाली नहीं हूं।

सलीम ने थोड़ा झुकते हुए जवाब दिया: डर तो शायद आपको खुद से लग रहा है आंटी, मुझसे नहीं। मैं आपको डराने नहीं आया बस सच दिखा रहा हूं। क्या आप वाकई मंजु को मुझसे अलग कर पाएंगी, जब आप खुद मेरी नज़रों से नज़रें नहीं मिला पा रही?

अब मम्मी की सांसें तेज़ हो रही थी। उन्होंने खुद को सख्त दिखाने की कोशिश की, पर उनकी नजरें बार-बार सलीम के चेहरे से भटक कर उसकी मजबूत बाहों और खुली छाती पर जा टिकती। जैसे मन कुछ और कह रहा हो और जुबान कुछ और।

सलीम ने मम्मी का चेहरा हल्के से अपनी उंगलियों से सीधा किया, और बहुत नर्मी से बोला: आप मां है, ये मैं समझता हूं पर आप औरत भी है। औरत का दिल चाहे जितना भी छुपाए, उसकी आंखें सब कह देती है। मंजु को क्या करना है, वो उसकी मर्जी होगी लेकिन आप? आप मुझसे इतनी नफरत करती है तो फिर इतना घबरा क्यों रही है?

सलीम ने एक पल मम्मी की आंखों में गहराई से देखा और शांत लहजे में कहा: अगर मंजु की जगह आप होती, तो क्या तब भी आप मुझसे कहती कि मुझे भूल जाओ?

मम्मी थोड़ी सहम सी गई। उनकी आंखें अब सलीम की तरफ टिक गई थी-भारी और नर्वस।

वो बोली: ये तुम क्या बोल रहे हो, सलीम? मैं भला तुम्हारे साथ प्यार क्यों करने लगी?

सलीम हल्की मुस्कान के साथ बोला: शायद इसलिए क्योंकि तुमने अपनी बेटी की आंखों में वो प्यार नहीं देखा। जो अक्सर एक नादान उम्र में पनपता है। मैंने मंजु को एक मासूम कली से पूरा फूल बना दिया है। और अगर एक मजबूत, मर्दाना हाथ उसकी जिंदगी में रंग भर दे तो इसमें गलत क्या है?

(फिर सलीम धीरे से मम्मी के कंधे पर हाथ रखता है)

सलीम की आवाज़ अब और गहरी हो चुकी थी: मैं सिर्फ इतना चाहता हूं, कि तुम मंजु को मुझसे अलग मत करो। मैंने उसके चेहरे पर जो मुस्कान देखी है -वही मुस्कान तुमने उस दिन खिड़की से बाहर झांकते हुए भी देखी थी, याद है ना? वो चमक, वो खुशी जो सालों से तुम्हारे घर में कहीं खो गई थी।

मम्मी कुछ नहीं बोली। उनके होंठ थरथरा रहे थे, पर आवाज नहीं निकली। उनकी आंखें सलीम की बातों से हट ही नहीं पा रहीं थी। वो कंधे से उसका हाथ हटाना चाहती थी। लेकिन उनका हाथ नहीं उठा। उनकी सांसें अब तेज़ हो रही थी। मैं देख सकता था उनकी आंखों में एक तूफान चल रहा था। एक तरफ मां होने की जिम्मेदारी और दूसरी तरफ एक औरत होने का डर, जिज्ञासा और कहीं ना कहीं एक डगमगाता हुआ आत्मविश्वास।

सलीम की बात सुन कर मम्मी एक-दम खामोश हो गई। उनकी आंखें अब सलीम की आंखों से बचने लगी थी। वो चुप-चाप उसके सामने खड़ी थी जैसे उनके पास अब कहने को कुछ बचा ही नहीं था। मैंने गौर किया मम्मी ने अब तक सलीम का हाथ अपने कंधे से नहीं हटाया था। कुछ पल बाद, जैसे किसी गहरी सोच से निकल कर मम्मी ने धीमी आवाज़ में कहा-

मम्मी: मैं अपनी बेटी के चेहरे पर वो खुशी देखना चाहती हूं। जो शायद तुमने उसे दी है। लेकिन अगर किसी को पता चल गया तो? ये समाज क्या कहेगा?

सलीम थोड़ी देर उसे देखता रहा, फिर नर्मी से बोला: समाज तो रात को चादर ओढ़ कर सो जाता है। किसके साथ कौन सोया उसे कभी पता नहीं चलता। (उसकी आवाज में अब भी वही गहराई थी) मैं भी उसी रात के अंधेरे में मंजु को चाहूंगा। बिना शोर, बिना नाम के। ये मेरा वादा है। किसी को कुछ नहीं पता चलेगा।

मैं चुप-चाप खड़ा सब देख रहा था। सलीम का हाथ मम्मी के कंधों पर था, और उसकी उंगलियां धीरे-धीरे मम्मी का पल्लू सहला रही थी। जैसे ही वो उंगलियां खिसकती गई, मम्मी का पल्लू सरक कर नीचे गिर गया। लेकिन मम्मी को इसका ज़रा भी होश नहीं था।

वो सलीम की आंखों में ऐसे खोई हुई थी, जैसे कुछ और दिख ही नहीं रहा हो। उनके ब्लाउज़ से झांकती हल्की-सी झलक, वो एक पल को ठहर गई थी। माहौल में जैसे एक खामोशी जम गई थी, जो थोड़ी देर बाद सलीम की धीमी आवाज़ से टूटी।

सलीम (धीरे, मगर ठहरे हुए लहजे में): तो आपने क्या सोचा?

मम्मी ने अपनी नज़रें थोड़ी झुका ली। उनका चेहरा भावुक था, मगर आवाज़ में एक अजीब-सी मजबूरी थी।

मम्मी: सलीम मेरी बेटी तुमसे बहुत प्यार करती है। मैं चाह कर भी तुम्हें उससे अलग करने की सोच नहीं पा रही। मैं चाहती हूं कि तुम उसे वैसे ही प्यार देते रहो जैसे अब तक दिया है। उसे कभी अकेला मत महसूस होने देना। (थोड़ा रुक कर, फिर बहुत धीमे से, जैसे खुद से कह रही हों) शायद उसकी किस्मत में तुम्हारे जैसा मर्द ही लिखा था।

सलीम ने धीरे से मम्मी की ठुड्ढी थाम कर उनका चेहरा ऊपर किया, उनकी आंखों में फिर से देखा।

सलीम (नज़रों में ठहराव और हल्की मुस्कान के साथ): मैं आपको भी अकेला नहीं छोड़ूंगा।

एक बार फिर मम्मी उसकी आंखों में डूब सी जाती है। और अपने हल्के होठों को हिलाते हुए कामुक आवाज़ में मम्मी: मैं अब यह नीरस बाहरी ज़िंदगी ही जीना चाहती हूं।

सलीम अपने होठों को मम्मी के होठों के क़रीब लाकर बोला: आपकी निराशा का हल मेरे पास है।

मम्मी कुछ बोलने जा रही थी, उनके होठों से बस इतना निकला: क्या?

तभी सलीम ने अपने होंठ मम्मी के होंठों पर रख दिए। मम्मी सलीम के इस हमले से अंजान थी। वो कुछ सोच पाती, इससे पहले सलीम मम्मी के होठों को चूसने लगा।

कुछ देर में मम्मी को होश आया, और उन्होंने सलीम को एक झटका देकर खुद से दूर किया। अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए मम्मी बोली: सलीम, मेरी नीरस ज़िंदगी का हल यह नहीं है।

सलीम: आप मेरी आंखों में देख कर बात कीजिए, उस दिन कमरे की विंडो से आप अंदर देख कर अपना बदन क्यों मसल रही थी?

मम्मी सलीम की बात सुन कर चुप-चाप अपना सिर झुका लेती है। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उनके दिल में कुछ छिपा हो, कोई ऐसा सच जो वो ज़ुबान पर नहीं ला पा रही। उनकी खामोशी खुद एक कबूलनामा लग रही थी, जैसे वो भी कहीं ना कहीं अपनी बेटी की तरह सलीम के नीचे अपने तन को महसूस करना, उसके हाथों से खुद को मसलवाना, उसके मज़बूत सीने के नीचे खुद को बिछा देना चाहती थी।

जब मम्मी ने कुछ नहीं कहा, तो सलीम थोड़ा और करीब गया। उसने धीरे से उनका चेहरा अपने हाथों में लिया, उनकी आंखों में देखा और नरम लेकिन ठहरी हुई आवाज़ में बोला: मुझे पता है, तुम अपने पति की कमी को हर रोज़ महसूस करती हो। और उस अधूरेपन को पूरा करने की चाह तुम्हारे दिल में भी कहीं ना कहीं बाकी है।

सलीम की बात सुन कर मम्मी ने अपनी आंखें बंद कर ली। तब सलीम ने अपने होंठ मम्मी के होठों से जोड़ दिए। और वो अपनी एक बाजू मम्मी की कमर में डाल कर उन्हें अपने करीब खींच लेता है।

सलीम के सीने से लगते ही मम्मी की सांसें तेज़ चलने लगती है। जिसे उनकी फूलती हुई चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थी। सलीम मम्मी के होंठों को चूमता रहा, मम्मी ना तो उसका साथ दे रही थी, ना ही उसे रोक रही थी। मम्मी हल्के खुले होठों के साथ उसके सामने खड़ी थी, सलीम ने नज़रों की तलब में धीरे से उनका पल्लू सरका दिया।

फिर वह मम्मी की कमर से नीचे गांड तक अपना हाथ धीरे-धीरे ले जाता है, और उनके होठों को गहराई से चूमने लगता है, जैसे हर एहसास को अपने अंदर समेट लेना चाहता हो। मैं यह देख कर हैरान था कि मम्मी कितनी आसानी से सलीम को अपने होंठ चूसने दे रही थी। और वो अपनी गांड भी मसलवा रही थी।

धीरे-धीरे मम्मी भी सलीम के होंठों की गर्मी और तरीके को महसूस करने लगी थी। अब वो खुद भी उसी रफ्तार और अंदाज़ में अपने होंठ चलाने लगी थी। मम्मी अपनी आंखें बंद किए सलीम का थोड़ा साथ दे रही थी। जब सलीम को लगा कि मम्मी उसके कब्जे में आ रही थी, सलीम उसके होठों को चूमते हुए अपना हाथ उसकी कमर से ऊपर ले गया। उसके हाथ मम्मी के बूब्स पर पहुंचे जहां सारी तनी हुए थी।

जब उसने वहां हल्का दबाव दिया, तो मम्मी अचानक सलीम से दूर हो गई। वो सलीम से मुंह मोड़ कर खड़ी हो गई, उसकी पीठ अब सलीम की तरफ थी।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो धीमी आवाज़ में बोली: सलीम जी ये ठीक नहीं है। मुझसे ये सब नहीं होगा। अगर मेरी बेटी को पता चल गया तो मैं उसे क्या मुंह दिखाऊंगी?

सलीम ने थोड़ी नरमी से कहा: इसमें गलत क्या है? आपको भी अपनी इच्छाएं पूरी करने का हक है। सिर्फ दूसरों के लिए जीना ही सब कुछ नहीं होता।

मम्मी कुछ नहीं बोली, बस चुप-चाप खड़ी रही। उसके हाथ साड़ी के पल्लू को कस कर पकड़ रहे थे, और उसकी सांसें थोड़ी तेज़ चल रही थी। सलीम चुप-चाप मम्मी के पीछे जाकर खड़ा हो गया। अगले ही पल उसने अपनी मज़बूत बाहें मम्मी के चारों तरफ कस दी।

वो चौंकी, उसके होठों से हल्की-सी सिहरन भरी आवाज़ निकली और बोली: सलीम ये क्या कर रहे हो?

उसकी आवाज़ में डर नहीं, बल्कि कांपती हुई चाह थी। सलीम ने कुछ नहीं कहा। उसकी गर्म सांसें अब मम्मी की गर्दन को छूने लगी। उसने झुक कर धीरे से गर्दन पर होंठ रखे, फिर वहीं रुक कर हल्की-हल्की चुम्बन देने लगा। मम्मी की आँखें बंद हो गई। उसके होंठ कांपे। लेकिन तभी उसने हल्का सा धक्का दिया और बोली: सलीम, ये ठीक नहीं है, तुम हटो।

उसके शब्द रुकने वाले थे, मगर उसकी देह अब भी सलीम के करीब टिके रहना चाह रही थी। सलीम का बदन अब पूरी तरह से उसके पीछे सट गया था। उसका लंड अब सख्त हो चुका था, और मम्मी को उनकी गांड पर साफ़ महसूस हो रहा था। वो कुछ कहने ही वाली थी कि सलीम ने मम्मी के कान के पास अपनी जुबान फिराई। उसने झट से गर्दन मोड़ी, लेकिन मम्मी का चेहरा लाल हो चुका था।

मम्मी: तुम्हें समझ नहीं आता क्या (मम्मी ने धीमी, भीगी हुई आवाज़ में कहा) मुझे ऐसा नहीं चाहिए।

मगर मम्मी के हाथ अब भी सलीम की बाजुओं को थामे हुए थे। उसकी उंगलियां ज़रा भी ढीली नहीं हुई थी। सलीम ने मम्मी की कमर को और कस कर पकड़ लिया, और अपनी गर्दन उसके बालों में छुपा दी। सलीम अब पीछे से उसके लंड का मम्मी की गांड पर दबाव बना रहा था, जैसे धीरे-धीरे उसकी गांड में उतर जाना चाहता हो।

मम्मी ने फिर कहा: मत करो सलीम, कोई देख लेगा।

लेकिन उसकी आवाज़ अब और भी धीमी थी। जैसे खुद ही चाहती हो कि कोई ना सुने।

आपको अभी तक की कहानी कैसी लगी मुझे [email protected] पर मेल करे।

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